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तीन दिन की गिरावट के बाद क्रूड ऑयल की कीमतों में तेजी: जानें बढ़ोतरी के पीछे की बड़ी वजहें

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बीते तीन कारोबारी सत्रों में गिरावट के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतों में एक बार फिर तेजी देखने को मिली है। यह उछाल वैश्विक राजनीतिक तनाव, उत्पादन कटौती और मांग में बढ़ोतरी जैसी कई प्रमुख वजहों से जुड़ा हुआ है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि तेल की कीमतें क्यों बढ़ीं, इसका असर भारतीय बाजार और उपभोक्ताओं पर क्या पड़ सकता है, और आने वाले समय में क्या उम्मीद की जा सकती है।

तीन दिन की गिरावट के बाद उछाल: क्या हुआ?

अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत तीन दिनों तक गिरने के बाद फिर से ऊपर चढ़ी और $88 प्रति बैरल के आसपास पहुंच गई। वहीं, वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड भी $84 प्रति बैरल के करीब कारोबार करता नजर आया।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह उछाल अस्थायी नहीं है, बल्कि इसके पीछे कुछ ठोस आर्थिक और राजनीतिक वजहें हैं।

1. भू-राजनीतिक तनाव और मध्य पूर्व की स्थिति

तेल की कीमतों पर सबसे बड़ा असर मध्य पूर्व में चल रहे राजनीतिक और सैन्य तनावों का पड़ता है। इजराइल और ईरान के बीच बढ़ती तनातनी और रेड सी के आसपास के इलाकों में अस्थिरता के चलते तेल आपूर्ति को लेकर आशंका बनी हुई है।

ईरान एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है, और उसके खिलाफ किसी भी तरह के प्रतिबंध या युद्ध की स्थिति में तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है। इससे कीमतों पर तुरंत असर पड़ता है।

2. ओपेक प्लस देशों की नीति

OPEC+ (Organization of the Petroleum Exporting Countries and allies) देशों द्वारा उत्पादन कटौती की नीति भी कीमतों में तेजी लाने का एक प्रमुख कारण है। सऊदी अरब और रूस जैसे देश लगातार उत्पादन में कटौती कर रहे हैं ताकि बाजार में संतुलन बना रहे और कीमतें एक सीमा से नीचे न गिरें।

हाल ही में ओपेक+ की मीटिंग में संकेत दिया गया कि उत्पादन कटौती की नीति फिलहाल बरकरार रहेगी, जिससे बाजार को मजबूती मिली।

3. वैश्विक मांग में सुधार

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोविड के बाद धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियों में सुधार आया है। चीन और अमेरिका जैसे बड़े उपभोक्ता देशों में तेल की मांग बढ़ रही है। विमानन, ट्रांसपोर्ट और इंडस्ट्रियल सेक्टर में रिकवरी ने भी क्रूड ऑयल की मांग को बल दिया है।

विशेष रूप से चीन में आर्थिक डेटा में सुधार से बाजार में सकारात्मकता आई है, जिससे क्रूड की कीमतों को समर्थन मिला।

4. अमेरिकी इन्वेंटरी डाटा का असर

अमेरिका के एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (EIA) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, कच्चे तेल के भंडार में अपेक्षा से अधिक गिरावट दर्ज की गई है। यह डेटा बताता है कि अमेरिका में खपत बढ़ रही है, और स्टॉक में कमी आने से कीमतों को बल मिला है।

5. डॉलर इंडेक्स और ब्याज दरें

डॉलर इंडेक्स में कमजोरी का मतलब है कि अन्य मुद्राओं में व्यापार करने वाले देशों के लिए क्रूड सस्ता हो जाता है, जिससे मांग बढ़ सकती है। वहीं, अमेरिका में ब्याज दरों पर फेडरल रिजर्व के नरम रुख ने भी बाजार में सकारात्मक माहौल बनाया है।

भारत पर क्या होगा असर?

भारत अपनी ज़रूरत का 85% से ज्यादा क्रूड ऑयल आयात करता है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता पर पड़ता है।

1. पेट्रोल-डीजल की कीमतें

अगर क्रूड की कीमतें इसी तरह बढ़ती रहीं, तो पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि संभव है। हालांकि भारत सरकार टैक्स स्ट्रक्चर के ज़रिए कीमतों को कुछ हद तक नियंत्रित करने की कोशिश करती है, लेकिन लंबे समय तक ऊंची कीमतें टिकने पर असर दिखता ही है।

2. महंगाई बढ़ने की आशंका

तेल महंगा होने से ट्रांसपोर्ट लागत बढ़ती है, जिससे जरूरी वस्तुओं की कीमतों पर भी असर पड़ता है। इससे महंगाई दर में इजाफा हो सकता है, जो रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति को भी प्रभावित कर सकता है।

3. व्यापार घाटा बढ़ने की संभावना

उच्च क्रूड प्राइस का एक अन्य दुष्प्रभाव भारत के व्यापार घाटे पर पड़ता है। जब भारत ज्यादा कीमत पर तेल आयात करता है, तो आयात बिल बढ़ता है, जिससे चालू खाता घाटा भी बढ़ सकता है।

क्या आने वाले दिनों में और बढ़ेंगी कीमतें?

तेल की कीमतों का भविष्य पूरी तरह से वैश्विक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अगर मध्य पूर्व में तनाव और बढ़ता है या ओपेक+ देशों की ओर से और कटौती होती है, तो कीमतों में और तेजी देखी जा सकती है।

हालांकि, दूसरी ओर यदि वैश्विक मंदी की आशंका बढ़ती है या अमेरिका और यूरोप में आर्थिक सुस्ती आती है, तो कीमतों पर दबाव बन सकता है।

संभावनाएं:

  • तेजी जारी रह सकती है अगर भू-राजनीतिक स्थिति और उत्पादन कटौती का दौर चलता रहा।

  • स्थिरता भी संभव है अगर अमेरिका और अन्य देशों से आपूर्ति में इज़ाफा हो।

  • गिरावट तब आ सकती है जब वैश्विक मांग में ठहराव या गिरावट देखने को मिले।

निष्कर्ष

क्रूड ऑयल की कीमतों में हालिया तेजी सिर्फ एक तकनीकी सुधार नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई गहराई से जुड़े वैश्विक कारक हैं। उत्पादन कटौती, राजनीतिक तनाव, मांग में इज़ाफा और अमेरिकी इन्वेंटरी में गिरावट – ये सभी मिलकर इस उछाल का कारण बने हैं।

भारत जैसे आयात-निर्भर देश के लिए यह स्थिति चिंता की बात हो सकती है, खासकर अगर यह तेजी लंबे समय तक बनी रहती है। आम आदमी की जेब पर असर, महंगाई और ट्रेड डेफिसिट जैसे मुद्दों पर सरकार को लगातार नजर बनाए रखनी होगी।

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