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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादास्पद फैसले पर लगाई रोक, कहा – महिला गरिमा सर्वोपरि

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हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले ने देशभर में बहस छेड़ दी थी, जिसमें कहा गया था कि "ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं है"। इस फैसले पर कड़ी आलोचना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत हस्तक्षेप किया और हाईकोर्ट के इस विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी। इस मामले ने न केवल भारतीय न्याय प्रणाली की व्याख्या को सवालों के घेरे में खड़ा किया, बल्कि महिला सुरक्षा और लैंगिक न्याय को लेकर भी नई चर्चा को जन्म दिया।

क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि अगर किसी महिला के ब्रेस्ट को जबरदस्ती छुआ जाता है, लेकिन उसके साथ कोई जबरन यौन संबंध नहीं बनाया जाता, तो इसे बलात्कार (रेप) की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। यह फैसला आते ही देशभर में विवाद खड़ा हो गया, क्योंकि यह लैंगिक संवेदनशीलता और महिला सुरक्षा को कमजोर करने वाला माना गया।

फैसले के मुख्य बिंदु:

  1. अदालत ने तर्क दिया कि जब तक यौन संबंध स्थापित नहीं होते, तब तक रेप का मामला नहीं बनता।

  2. अदालत ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 और 376 की व्याख्या करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न और बलात्कार में अंतर होता है

  3. इस फैसले में यह भी कहा गया कि महिला के ब्रेस्ट को पकड़ना मात्र यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आ सकता है, लेकिन इसे रेप नहीं कहा जा सकता

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: विवादित आदेश पर रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर जनता, कानूनी विशेषज्ञों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कड़ी आपत्ति जताई। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर तत्काल रोक लगाते हुए कहा कि यह न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और महिला सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य तर्क:

  1. महिला की गरिमा और सहमति सर्वोपरि है – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध शारीरिक रूप से छूना उसकी गरिमा का हनन है, और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।

  2. कानूनी परिभाषा का व्यापक दृष्टिकोण – अदालत ने स्पष्ट किया कि यौन अपराधों की परिभाषा सिर्फ जबरन संभोग तक सीमित नहीं हो सकती, बल्कि इसमें किसी भी प्रकार का अवांछित यौन संपर्क या हिंसा भी शामिल है

  3. संदेश का प्रभाव – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के फैसले समाज में गलत संदेश देते हैं और महिलाओं के प्रति अपराध को बढ़ावा दे सकते हैं।

महिला सुरक्षा और न्याय प्रणाली पर प्रभाव

इस मामले ने भारतीय न्याय प्रणाली में महिलाओं की सुरक्षा और यौन उत्पीड़न से जुड़े कानूनों की व्याख्या पर गहरी बहस को जन्म दिया है।

1. क्या कानूनों की व्याख्या सही हो रही है?

  • भारतीय कानूनों में बलात्कार की परिभाषा को लेकर अलग-अलग व्याख्याएं की जाती रही हैं।

  • IPC की धारा 375 के तहत रेप की परिभाषा में केवल शारीरिक संबंध ही नहीं, बल्कि किसी भी प्रकार की यौन हिंसा को शामिल किया गया है

  • POSCO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी प्रकार का अवांछित यौन संपर्क यौन अपराध की श्रेणी में आता है

2. महिला सुरक्षा के लिए क्या जरूरी है?

  • इस तरह के फैसले समाज में महिलाओं के प्रति अपराध को लेकर गलत मानसिकता को मजबूत कर सकते हैं

  • सरकार और न्यायपालिका को चाहिए कि महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनों को स्पष्ट और कठोर बनाया जाए

  • साइबर अपराध, यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ जैसे अपराधों को गंभीरता से लिया जाए ताकि अपराधियों में डर पैदा हो।

जनता और महिला संगठनों की प्रतिक्रिया

  • महिला अधिकार संगठनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की कड़ी निंदा की और इसे महिला सुरक्षा के खिलाफ बताया।

  • सोशल मीडिया पर #JusticeForWomen और #StopSexualViolence जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे

  • कई कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसे फैसले यौन हिंसा से जुड़े कानूनों को कमजोर कर सकते हैं

निष्कर्ष: क्या इस फैसले से कुछ बदलेगा?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट है कि महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी तरह की यौन हिंसा को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह घटना हमें याद दिलाती है कि हमारी न्याय व्यवस्था को संवेदनशील और मजबूत बनाए रखने की जरूरत है ताकि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सके।

आशा है कि यह मामला भविष्य में न्यायपालिका को यौन अपराधों की व्याख्या करते समय अधिक संवेदनशील और सटीक दृष्टिकोण अपनाने की दिशा में मार्गदर्शन देगा

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