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कश्मीर में खत्म हो रहा अलगाववाद: हुर्रियत के दो गुटों ने किया किनारा

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कश्मीर में अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की गतिविधियों में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिले हैं। केंद्र सरकार की कठोर नीतियों और सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव के परिणामस्वरूप, हुर्रियत से जुड़े कई संगठनों और नेताओं ने अपनी पूर्व की नीतियों से दूरी बना ली है।

तहरीक-ए-हुर्रियत पर प्रतिबंध

दिसंबर 2023 में, केंद्र सरकार ने तहरीक-ए-हुर्रियत जम्मू-कश्मीर को गैरकानूनी संगठन घोषित किया। इस संगठन पर आरोप था कि यह जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने और इस्लामिक शासन स्थापित करने की गतिविधियों में शामिल था। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह संगठन भारत विरोधी प्रचार और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा था।TV9 

हुर्रियत नेताओं का मुख्यधारा में शामिल होना

सितंबर 2024 में, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता सैयद सलीम गिलानी ने अलगाववादी राजनीति छोड़कर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) में शामिल होने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान केवल राजनीतिक माध्यमों से संभव है, न कि हिंसा से। गिलानी ने PDP की नीतियों की सराहना करते हुए कहा कि यह पार्टी जम्मू-कश्मीर के लोगों से जुड़े मुद्दों को उठाती है।

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के भीतर विभाजन

जून 2020 में, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सैयद अली शाह गिलानी ने संगठन से इस्तीफा दे दिया और पाकिस्तान स्थित अब्दुल्ला गिलानी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उन्होंने संगठन के अन्य सदस्यों पर अनुशासनहीनता और जवाबदेही की कमी के आरोप लगाए।

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया

मार्च 2025 में, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कश्मीर में अलगाववाद अब इतिहास बन चुका है। उन्होंने बताया कि हुर्रियत से जुड़े दो संगठनों, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट और डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल मूवमेंट, ने अलगाववादी विचारधारा से नाता तोड़ लिया है। शाह ने इसे राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों को इसका श्रेय दिया।

निष्कर्ष

कश्मीर में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और उससे जुड़े संगठनों की गतिविधियों में आई इस बदलाव की पृष्ठभूमि में सरकार की कठोर नीतियां, सुरक्षा बलों का बढ़ता दबाव और स्थानीय जनता की बदलती मानसिकता प्रमुख कारक रहे हैं। अलगाववादी नेताओं का मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होना और संगठनों पर लगाए गए प्रतिबंध इस बात का संकेत हैं कि कश्मीर में शांति और स्थिरता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है।

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