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नेपाल में राजशाही समर्थकों का प्रदर्शन, पीएम ओली का बयान
- Reporter 12
- 31 Mar, 2025
नेपाल में राजशाही समर्थकों द्वारा हाल ही में किए गए प्रदर्शनों ने देश की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद में कहा कि पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह इन प्रदर्शनों और हिंसा को भड़काने के पीछे हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में लोकतंत्र और राजशाही के बीच की बहस एक बार फिर गरमा गई है।
नेपाल में राजशाही की पृष्ठभूमि
नेपाल एक समय पर एक संप्रभु हिंदू राज्य था, जहां शाही शासन का बोलबाला था। 2008 में, नेपाल की संविधान सभा ने राजशाही को समाप्त कर गणराज्य की स्थापना की। इसके बाद नेपाल एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तित हो गया। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में कुछ गुटों द्वारा राजशाही की वापसी की मांग बार-बार उठाई गई है।
राजशाही समर्थकों का मानना है कि नेपाल में लोकतंत्र के तहत राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है, भ्रष्टाचार बढ़ा है और विकास की गति धीमी हो गई है। इनका मानना है कि शाही शासन में देश अधिक संगठित और स्थिर था। इस कारण से, वे पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की वापसी का समर्थन कर रहे हैं।
राजशाही समर्थकों के हालिया प्रदर्शन
राजशाही समर्थकों ने कई शहरों में प्रदर्शन किए हैं, जिनमें काठमांडू, पोखरा और अन्य प्रमुख स्थान शामिल हैं। इन प्रदर्शनों में हजारों लोग शामिल हुए और उन्होंने राजशाही की वापसी के समर्थन में नारेबाजी की।
सड़क पर उतरे प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और देश में पुनः राजशाही स्थापित करने की मांग की। कुछ प्रदर्शनों में हिंसा भी देखी गई, जिसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लेना पड़ा। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है, जिससे वे निराश हैं।
पीएम ओली का बयान
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद में स्पष्ट रूप से कहा कि इन प्रदर्शनों को भड़काने में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की भूमिका है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्व राजा के बयानों ने लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए उकसाया और इससे देश में अस्थिरता बढ़ रही है।
ओली ने यह भी कहा कि नेपाल एक लोकतांत्रिक गणराज्य है और राजशाही की कोई जगह नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कोई व्यक्ति या समूह देश की स्थिरता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की प्रतिक्रिया
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने इन आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि वे नेपाल की स्थिरता और शांति के पक्षधर हैं और उन्होंने कभी भी हिंसा का समर्थन नहीं किया है। उनके अनुसार, वे केवल जनता की भावनाओं का सम्मान करते हैं और उनकी आवाज को सुने जाने की वकालत करते हैं।
शाह का कहना है कि नेपाल को एक बार फिर से अपने मूल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों की ओर लौटने की आवश्यकता है। उनका मानना है कि राजशाही नेपाल के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
लोकतंत्र बनाम राजशाही: नेपाल की राजनीतिक बहस
नेपाल में लोकतंत्र और राजशाही के समर्थन में जनता दो धड़ों में बंटी हुई है। जहां एक ओर लोकतंत्र समर्थक इसे स्वतंत्रता और समानता का प्रतीक मानते हैं, वहीं दूसरी ओर राजशाही समर्थकों का मानना है कि यह व्यवस्था विफल हो चुकी है।
लोकतंत्र समर्थकों का कहना है कि नेपाल को आधुनिक विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था जरूरी है। वे मानते हैं कि भ्रष्टाचार और अस्थिरता के बावजूद, लोकतंत्र ही देश को आगे बढ़ाने का एकमात्र तरीका है।
दूसरी ओर, राजशाही समर्थक यह दावा करते हैं कि जब देश में शाही शासन था, तब नेपाल अधिक संगठित और समृद्ध था। वे यह भी कहते हैं कि लोकतंत्र ने राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
नेपाल सरकार की प्रतिक्रिया
नेपाल सरकार ने राजशाही समर्थकों के प्रदर्शनों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है और सुरक्षा बलों को सड़कों पर तैनात किया गया है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि देश में किसी भी प्रकार की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
साथ ही, सरकार इस बात पर भी जोर दे रही है कि नेपाल एक लोकतांत्रिक देश है और इसे राजशाही की ओर वापस नहीं ले जाया जा सकता। प्रधानमंत्री ओली और उनकी पार्टी का मानना है कि इस तरह के प्रदर्शनों से देश की स्थिरता और विकास प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
नेपाल का भविष्य: क्या राजशाही की वापसी संभव है?
राजशाही समर्थकों की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या नेपाल में राजशाही की वापसी संभव है? हालांकि, संविधान के अनुसार नेपाल अब एक गणराज्य है और इसकी कानूनी रूप से वापसी आसान नहीं होगी।
लेकिन अगर राजशाही समर्थकों का दबाव बढ़ता है और वे एक राजनीतिक दल के रूप में संगठित होते हैं, तो भविष्य में कोई बड़ा बदलाव संभव हो सकता है। नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और सरकार की कमजोरियों के कारण जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है, जिससे राजशाही समर्थकों को एक नया आधार मिल सकता है।
निष्कर्ष
नेपाल में राजशाही समर्थकों के प्रदर्शन और प्रधानमंत्री ओली के संसद में दिए गए बयान ने देश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। सरकार और पूर्व राजा के बीच इस विवाद ने यह दिखाया है कि नेपाल में लोकतंत्र और राजशाही की बहस अभी भी जीवित है।
जहां एक ओर सरकार लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, वहीं दूसरी ओर कुछ वर्ग अब भी राजशाही की वापसी की मांग कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि नेपाल इस राजनीतिक संघर्ष को कैसे हल करता है और क्या वाकई में राजशाही की वापसी संभव है या नहीं।
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